यस-नो की परंपरा को हां-नहीं में बदला, टैबलेट-मोबाइल भी:ओम बिरला ने दूसरी बार लोकसभा स्पीकर बनने का बनाया रिकॉर्ड, छात्र राजनीति से की थी शुरुआत

मोदी 3.0 में ओम बिरला लगातार दूसरी बार लोकसभा अध्यक्ष चुने गए। हालांकि इस बार पिछली बार की तरह इस पद के लिए विपक्ष से सहमति नहीं बन पाई थी। चुनाव हुआ, लेकिन बिरला की जीत तय थी और हुआ भी वही। बिरला राजस्थान के कोटा से लगातार तीसरी बार लोकसभा चुनाव जीते हैं। ओम बिरला के नाम बतौर अध्यक्ष पुराने और नए संसद भवन दोनों सदनों के संचालन का अनुभव है, जो एक अनोखा रिकॉर्ड है। यह रिकॉर्ड शायद ही कभी टूट सके। 2023 में नए संसद भवन का उद्घाटन हुआ था। बिरला यदि इस पद पर अपना दूसरा कार्यकाल भी पूरा कर लेते हैं, तो उनके नाम एक रिकॉर्ड और दर्ज हो सकता है। साढ़े तीन दशक बाद लगातार 2 बार लोकसभा का कार्यकाल पूरे करने वाले नेता।इससे पहले ऐसा सिर्फ बलराम जाखड़ कर पाए थे। बलराम जाखड़ ने साल 1980 से 1985 और 1985 से 1989 तक अपने दोनों कार्यकाल पूरे किए। पहले से मिल रहे थे संकेत, मोदी-शाह की पसंद और फिर दिखाया भरोसा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने ओम बिरला पर फिर भरोसा दिखाया गया है। मोदी 3.0 के मंत्रिमंडल विस्तार के दौरान ये संकेत मिल गया था कि लोकसभा अध्यक्ष को भी रिपीट किया जा सकता है। मोदी ने अपनी पुरानी टीम के कुछ चेहरों के पोर्टफोलियों तक नहीं बदले थे। राजनाथ सिंह को फिर रक्षा मंत्री, अमित शाह को फिर गृहमंत्री बनाया। नितिन गडकरी, निर्मला सीतारमण, अश्विनी वैश्नव, पीयूष गोयल, भूपेंद्र यादव को पिछले पोर्टफोलियों के साथ टीम में बनाए रखा। इस कारण लग रहा था कि बिरला फिर लोकसभा अध्यक्ष बन सकते हैं। राजस्थान से 4+1 का फॉर्मूला लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद जब 7 और 8 तारीख को दिल्ली में बैठकों का दौर चला, तब यह तय हो गया था कि राजस्थान से चार मंत्री और एक लोकसभा स्पीकर मतलब 4+1 फॉर्मूला बरकरार रखा जाए। बिरला के नाम पर एनडीए में सर्वसम्मति बनाई गई। राजनाथ सिंह और कुछ वरिष्ठ नेताओं ने विपक्षी पार्टियों के नेताओं को भी बिरला के नाम पर सर्वसम्मति बनाने का प्रयास किया था। पिछली बार कब हुआ था चुनाव आजाद भारत के लोकसभा इतिहास में 15 मई 1952 को पहली लोकसभा के स्पीकर का इलेक्शन हुआ था। इसके बाद आपातकाल के दौरान 1976 में भी लोकसभा स्पीकर के लिए मत विभाजन हुआ था। अब 2024 में तीसरी बार लोकसभा अध्यक्ष पद पर तीसरी बार चयन चुनाव से हुआ है। लोकसभा स्पीकर और राज्यसभा सभापति दोनों राजस्थान से अब लोकसभा स्पीकर और राज्यसभा सभापति के दोनों अहम पदों पर राजस्थान के नेता बरकरार हैं। उपराष्ट्रपति के तौर पर जगदीप धनखड़ राज्यसभा के सभापति हैं। लोकसभा स्पीकर के पद पर बिरला चुनाव जीत चुके हैं। बिरला पहली बार 2019 में लोकसभा स्पीकर बने थे, अब दूसरी बार उन्हें इस पद पर मौका मिला है। छात्र राजनीति से लोकसभा अध्यक्ष का सफर बिरला छात्र राजनीति से होते हुए लोकसभा अध्यक्ष बने, ऐसा सफर कम ही नेताओं को रहा है। बिरला जब किशोर थे, तभी से ही राजनीति में रुचि लेनी शुरू कर दी थी। कॉलेज में छात्र संघ का चुनाव लड़ा और छात्रसंघ पदाधिकारी निर्वाचित हुए। इसके बाद बीजेपी की राजनीति में सक्रिय हो गए। वे 1990 से पहले भारतीय जनता युवा मोर्चे के कोटा जिले के अध्यक्ष बने। इसके बाद बिरला वर्ष 1991 में भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष बने और इसके बाद वर्ष 1997 में युवा मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बने। छात्र राजनीति के दौरान भाजपा के आम कार्यकर्ता से लेकर बड़े नेताओं के संपर्क में आए, जिसमें नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नाम भी शामिल हैं। मोदी-शाह ने जून 2019 में जब लोकसभा अध्यक्ष के लिए बिरला का नाम प्रस्तावित किया, तो सभी चौंक गए थे। चंबल के लिए किया था आंदोलन बिरला की कर्मभूमि हमेशा कोटा ही रही है। बिरला का जन्म 23 नवंबर 1962 को हुआ। उनके पिता उस समय श्रीकृष्ण सरकारी सेवा में थे, वहीं मां शकुंतला घर संभालती थीं। उन्होंने स्कूली शिक्षा कोटा के गुमानपुरा राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय से की और उसके बाद बाद राजस्थान विश्वविद्यालय से बी.कॉम और एम.कॉम पूरी की। उनकी शादी अमिता से हुई और उनके दो बेटियां अंजली और आकांक्षा हैं। अमिता पेशे से सरकारी डॉक्टर हैं। ओम बिरला ने बूंदी में चंबल नदी के पानी की आपूर्ति के लिए आंदोलन किया था, जो काफी चर्चित रहा था। वहीं, बहुराष्ट्रीय कंपनियों के खिलाफ सिटी डेवलपमेंट टैक्स और मूवमेंट में छूट के लिए रावतभाटा आंदोलन के लिए भी उनके प्रयास काफी चर्चित रहे थे। तीर बार विधायक और तीन बार ही सांसद ओम बिड़ला ने 2003 से लेकर 2013 तक लगातार विधानसभा चुनाव जीता और इसके बाद 2014 से लेकर अब तक उन्होंने लगातार तीन बार लोकसभा चुनाव जीता। साल 2003 में उन्होंने कोटा में अपना पहला विधानसभा चुनाव लड़ा और जीते। उन्होंने कांग्रेस के शांति धारीवाल को 10 हजार से अधिक मतों के अंतर से हराया था। कोटा दक्षिण सीट से अगले विधानसभा चुनाव में, उन्होंने 2008 में कांग्रेस के उम्मीदवार राम किशन वर्मा से 24 हजार से अधिक मतों के अंतर से हराया। इसके बाद उन्होंने 2013 में कांग्रेस के पंकज मेहता के खिलाफ अपना तीसरा विधानसभा चुनाव लगभग 50,000 मतों से जीता था। 2003-08 में अपने कार्यकाल के दौरान, वे राजस्थान सरकार में संसदीय सचिव थे। इसके बाद, वर्ष 2014 के लोक सभा चुनाव में ओम बिरला ने कोटा-बूंदी निर्वाचन क्षेत्र से 2 लाख से अधिक वोटों के अंतर से जीत हासिल कर लोकसभा में प्रवेश किया। नवनिर्वाचित सांसद बिरला को 2014 में ही संसदीय प्राक्कलन समिति के सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया। बिरला संसदीय याचिका समिति, ऊर्जा संबंधी स्थायी समिति और सलाहकार समिति में भी सदस्य चुने गए। वर्ष 2019 के लोक सभा चुनाव में बिरला इसी सीट से लगातार दूसरी बार जीते थे। लोकसभा अध्यक्ष बनने के बाद शुरू की नई परम्पराएं 2019 में लोकसभा अध्यक्ष बनने के बाद ओम बिरला ने कुछ नई परम्पराएं शुरू कीं। उन्हें पहली बार 19 जून, 2019 को उन्हें 17वीं लोक सभा का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया था। सदन अध्यक्ष निर्वाचित होने के बाद उन्होंने सदन की कई पुरानी परंपराओं को बदला। कागजों पर चलने वाली संसदीय कार्यवाही को टैबलेट और मोबाईल पर डिजिटल स्वरूप देना ओम बिरला का बड़ा कदम रहा। वहीं, सदन में वोटिंग के दौरान ‘यस-नो’ की परंपरा को ‘हां-नहीं’ में बदला। सदन की कार्यवाही के दौरान राजभाषा के प्रयोग से उन्होंने लम्बे समय से चल रहे ट्रेंड को बदला। लोक सभा अध्यक्ष सांसदों को ऑनरेबल एमपी के संबोधन के बजाए ‘माननीय सदस्यगण’ कहकर संबोधित करते रहे। एडजर्नमेंट मोशन को ‘स्थगन प्रस्ताव’ और जोरो आवर को ‘शून्य काल’ कहा। सख्ती भी दिखाई, बड़ी संख्या में सांसद किए निलंबित संसद में पिछले साल 13 दिसंबर को युवाओं के अचानक घुसने से हंगामा मच गया था। इन युवाओं की घुसपैठ के चलते विपक्षी दलों ने लोकसभा की सुरक्षा में चूक के आरोप लगाए थे। बिरला का तर्क था कि इसे सुरक्षा में चूक नहीं माना जाए। खराब व्यवहार के कारण बिरला ने संसद से कुल 146 सांसदों को सस्पेंड किया। उन्होंने कहा था कि इस कार्यवाही को 13 दिसंबर की घुसपैठ की घटना से जोड़कर नहीं देखा जाए। सबसे ज्यादा कांग्रेस के 60 सांसद सस्पेंड किए, इनमें लोकसभा से 43 और राज्यसभा से 17 सांसद थे। डीएमके और तृणमूल कांग्रेस के 21-21, जेडीयू के 14, सीपीआई-एम के 5, सपा और एनसीपी के 4-4, सीपीआई और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के 3-3, नेशनल कॉन्फ्रेंस और आरजेडी के 2-2 सांसद थे। वहीं, आप, बसपा, केरल कांग्रेस, झामुमो, वीसीके, और आरएसपी के एक-एक सांसद थे। राजस्थान में एक और बड़ा नया पावर सेंटर पिछले विधानसभा चुनाव के बाद राजस्थान की राजनीति में बड़े बदलाव सामने आए हैं। पहले वसुंधरा राजे बड़ा पावर सेंटर हुआ करती थी, लेकिन अब समीकरण अलग हैं। बतौर मुख्यमंत्री भजनलाल पावर सेंटर हैं हीं। लेकिन ओम बिरला को लगातार दूसरी बार संवैधानिक पद मिलने और मोदी-शाह के नजदीकी होने के कारण वे एक बड़े पावर सेंटर के रूप में देखे जा रहे हैं। बिरला की खासियतों में से एक है माइक्रो मैनेजमेंट, जिसने उन्हें संगठन के कामों और जनता के बीच पकड़ बनाने में फायदा दिया। वे कई बार वे भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं को अपने माइक्रो मैनेजमेंट के फंडे समझाते भी आए हैं। कई बार पार्टी ने उनके लिए विशेष सत्र भी रखे हैं। उनके लोकसभा क्षेत्र में शादी-ब्याह हो या किसी का निधन हो जाए, बिरला पहले तो उपस्थित होने का प्रयास करते हैं, यदि उपस्थित नहीं हो पाते, तो फोन जरूर करते हैं। उनके लोकसभा क्षेत्र में बाढ़ आई हो या कोई और नुकसान हुआ हो, वे हमेशा मौके पर पहुंच हैं। चाहे वे सांसद रहे या लोकसभा अध्यक्ष, संकट के दौरान लोगों को मदद का प्रयास किया है और प्रशासन की बैठकें लेकर या निर्देश देकर जनता तक मदद पहुंचाई है। वे भाजपा के जमीनी नेताओं में से एक हैं। एक घंटे में 20 सवाल से, 47 साल पुराना रिकॉर्ड तोड़ चुके वर्ष 2019 में बिरला के लोकसभा अध्यक्ष बनते ही 47 साल बाद प्रश्नकाल में सभी सवाल पूछे गए। उस समय घर पर भी सवालों की एक लायब्रेरी मेंटेन करने वाले बिरला के नाम एक रिकॉर्ड और बन गया। एक घंटे के प्रश्न काल में 20 प्रश्न (तारांकित) रखे जाते हैं और लोकहित से जुड़े सांसदों के इन प्रश्नों का जवाब मंत्रियों को देना होता है। अमूमन मुख्य और सप्लीमेंटरी प्रश्न के साथ मुद्दे से जुड़े सांसदों के दूसरे प्रश्नों के चलते सभी 20 प्रश्न पूरे नहीं हो पाते हैं, लेकिन यह रिकार्ड बना दिया गया। तीन प्रश्नों में सदस्यों के मौजूद नहीं रहने से इनके उत्तरों को सीधे सभा पटल पर रख दिया गया जिससे बाकी के प्रश्नों के लिए मौका मिल गया। इस दौरान बिरला ने कहा भी था कि जल्दी प्रश्न पूछिए सभी 20 प्रश्न पूरे करने हैं। दरअसल 1972 की पांचवीं लोकसभा के चौथे सत्र से पहले प्रश्न काल में तारांकित प्रश्नों की संख्या निर्धारित नहीं थी, लेकिन इस साल के चौथे सत्र से इन प्रश्नों की संख्या 20 निर्धारित कर दी गई। तब से अब तक प्रश्न काल में 20 तारांकित प्रश्न ही रखे जाते हैं।

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