डीआरडीओ ने माइक्रोवेव ऑब्स्क्यूरेंट चैफ रॉकेट भारतीय नौसेना को सौंपा:यह तकनीक रॉकेट के चारों ओर एक माइक्रोवेव ढाल बनाती है, दुश्मन के रडार के पकड़ में नहीं आता

दुश्मन के रडार से बच कर अब नौसेना के रॉकेट हमला कर सकेंगे। डीआरडीओ जोधपुर की टीम ने एक स्पेश्यल तकनीक से चैफ का निर्माण किया है जो राॅकेट के चारो और माइक्रोवेव ढाल बना देता है जिससे रडार रॉकेट को पकड नहीं पाता। चैफ से आसमान में आर्टिफिश्यल बादल बन जाते है जो काफी समय तक छाए रहते है इस बादल की आड में राकेट वार कर देता है बादल होने से यह रडार में नहीं आता। डीआरडीओ जोधपुर की टीम द्वारा तैयार की गई इस तकनीक को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर एक कदम बताया है। डीआरडीओ जोधपुर लड़ाकू विमानों के लिए भी चैफ वायु सेना को सौंप चुका हैं। अब नौ सेना के रॉकेट के लिए चैफ तैयार कर सौंपा गया। डीआरडीओ ने मध्यम दूरी के इस माइक्रोवेव ऑब्स्क्यूरेंट चैफ रॉकेट को भारतीय नौसेना को सौंपा है। यह आला तकनीक रॉकेट के चारों ओर एक माइक्रोवेव ढाल बनाती है जो इसे रडार की पकड़ में आने की आशंका को कम करती है। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) ने आज नई दिल्ली में आयोजित एक समारोह में मध्यम दूरी के माइक्रोवेव ऑब्स्क्यूरेंट चैफ रॉकेट (एमआर-एमओसीआर) भारतीय नौसेना को सौंपा। इस माइक्रोवेव ऑब्स्क्यूरेंट चैफ (एमओसी) को डीआरडीओ की रक्षा प्रयोगशाला, जोधपुर ने विकसित किया है। यह ऐसी तकनीक है जो रडार संकेतों को अस्पष्ट करती है और प्लेटफार्मों और परिसंपत्तियों के चारों ओर माइक्रोवेव शील्ड बनाती है और इस प्रकार रडार की पकड़ में आने की आशंका को कम करती है। विशेष प्रकार के फाइबर से बनती है चैफ कृतिम बादल बनाता है इस मध्यम दूरी के चैफ रॉकेट में कुछ माइक्रोन के व्यास और अद्वितीय माइक्रोवेव आरोपण गुणों के साथ विशेष प्रकार के फाइबर का इस्तेमाल किया गया है। इस रॉकेट को दागे जाने पर यह पर्याप्त समय के लिए पर्याप्त क्षेत्र में फैले अंतरिक्ष में माइक्रोवेव अस्पष्ट बादल बनाता है और इस प्रकार रेडियो फ्रीक्वेंसी पकड़ने वाले शत्रुतापूर्ण खतरों के विरुद्ध एक प्रभावी कवच का निर्माण करता है। पहला परीक्षण सफल रहा एमआर-एमओसीआर के पहले चरण के परीक्षणों को भारतीय नौसेना के जहाजों से सफलतापूर्वक पूरा किया था। इस दौरान एमओसी क्लाउड बनाकर और अंतरिक्ष में लगातार छाया रहा। दूसरे चरण के परीक्षणों में, रडार क्रॉस सेक्शन (आरसीएस) द्वारा हवाई लक्ष्य को 90 प्रतिशत तक कम करने का प्रदर्शन किया गया था। इस सफल परीक्षण के बाद भारतीय नौसेना की ओर से इसे मंजूरी दे दी गई है। इस पर डीआरडीओ ने योग्यता जरूरतों को पूरा करने वाले सभी एमआर-एमओसीआर को सफलतापूर्वक भारतीय नौसेना को सौंप दिया है। रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की ओर कदम रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एमआर-एमओसीआर के सफल विकास पर डीआरडीओ और भारतीय नौसेना की सराहना की है। उन्होंने एमओसी तकनीक को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक और कदम बताया। रक्षा अनुसंधान एवं विकास विभाग के सचिव और डीआरडीओ के अध्यक्ष डॉ समीर वी कामत ने एमआर-एमओसीआर को भारतीय नौसेना के नौसेना आयुध निरीक्षण महानिदेशक रियर एडमिरल बृजेश वशिष्ठ को सौंप दिया है। डीआरडीओ के अध्यक्ष ने रक्षा प्रयोगशाला, जोधपुर टीम को इस महत्वपूर्ण उपलब्धि के लिए बधाई दी। नौसेना आयुध निरीक्षण महानिदेशक ने भी कम समय में रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण इस तकनीक को स्वदेशी रूप से विकसित करने के लिए डीआरडीओ के प्रयासों की सराहना की।

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