जिस घर में होगा नल, वहीं करूंगी शादी:महिला बोली- कुओं से पानी लाता देख, लोग अपनी बेटी की शादी इस गांव में करने से कतराते हैं

35 साल पहले नई नवेली दुल्हन बनकर गांव में आई थी। उस समय नल नहीं थे। एक-दो किलोमीटर दूर जाकर कुएं से पानी लाती थी। आज 35 साल बाद भी कुएं से पानी लाना पड़ रहा है। न जाने हम महिलाओं के सिर से पानी के मटके का बोझ कब उतरेगा। यह दर्द अकेली सोनाई मांझी गांव की पुष्पा देवी का नहीं है। इस गांव में रहने वाली हर महिला का है। कुएं से सुबह-शाम पानी लाना उनकी दिनचर्या में शामिल है। महिलाएं अपना दर्द बयां करते हुए कहती है कि कांग्रेस हो या बीजेपी, इन पार्टियों की सरकारें आती-जाती रहती है लेकिन किसी ने भी उनका दुख नहीं समझा। सिर्फ आश्वासन मिले। जिसका नतीजा यह है कि आज भी उन्हें घर से एक-दो KM दूर कुएं से पानी लाना पड़ता है। न जाने उनकी पीड़ा का समाधान कब होगा। हम बात कर रहे हैं। पाली जिला मुख्यालय से महज 12 KM की दूरी पर आबाद सोनाई मांझी गांव की। एक हजार घरों की बस्ती वाले इस गांव में 2500 के करीब वोटर है। जिनमें आधे से ज्यादा महिलाएं और बालिकाएं है। क्योंकि गांव के कई युवा काम-काज के सिलसिले में प्रदेश रहते है। वर्तमान में हर घर में सुविधाएं चाहिए लेकिन इस गांव की स्थिति यह है कि पर्याप्त पानी नहीं मिलने के चलते आज भी महिलाओं को सुबह-शाम पीने के पानी के लिए कुएं पर जाना पड़ता है। ऐसी स्थिति के चलते कई जने तो अपनी बेटी भी इस गांव में नहीं देना चाहते है। नल है लेकिन, महीने में एक-दो बार होती है सप्लाई
सोनाई मांझी गांव में पेयजल टंकी बनी हुई है। जल जीवन मिशन के तहत गांव के अधिकतर घरों तक नल कनेक्शन भी हो गए है। लेकिन स्थिति यह है कि महीने में 2-3 बार ही पानी की सप्लाई होती है। ऐसे में पीने के पानी के लिए आज भी गांव के लोग कुएं पर निर्भर है और नहाने-धोने के लिए उन्हें रुपए खर्चकर पानी के टैंकर मंगवाने पड़ते हैं। आर्थिक रूप से कमजोर लोग तो नहाने-धोने के लिए भी कुएं से पानी लाने को मजबूर है। ऐसे में उनके घर की महिलाएं और लड़कियां कुएं से पानी लाकर परेशान हो जाती है। 35 साल की कंचनदेवी कहती हैं। बेटी की छोटे गांव में शादी नहीं करूंगी। देखूंगी तक उस घर में नल कनेक्शन है या नहीं। पर्याप्त पानी आता है या नहीं। 35 साल बाद भी नहीं उतरा पानी के मटके का बोझ
55 साल की पुष्पादेवी बताती है कि आज से करीब 35 साल पहले जब वे दुल्हन बनकर इस गांव में आई थी। तब भी पीने का पानी कुंओं से भरना पड़ता था। आज पोते की बहू आ गई लेकिन हम महिलाओं के सिर से पानी के मटके का बोझ नहीं उतरा। रोजाना कुंए से पानी भरकर लाना हमारे लिए काफी कठिन होता है लेकिन न जाने हमारा दुख कौन दूर करेगा। 15 दिन में एक बार ही पानी आता है
35 साल की सुमन बताती है कि उसे भी यह समस्या देखते हुए काफी साल हो गए है। पानी की टंकी तो गांव में बनी हुई है लेकिन महीने में एक-दो बार ही पानी की सप्लाई मिलती है। ऐसे में पीने के पानी के लिए कुओं पर निर्भर है। स्टूडेंट बोली – पढ़ाई होती है बाधित
10वीं में पढ़ने वाली प्रेम का कहना है कि पर्याप्त पानी नल में नहीं आने के कारण उसे मम्मी के साथ कुएं पर पानी भरने सुबह-शाम आना पड़ता है। जिसमें तीन-चार घंटे खराब हो जाते है। अगर घर तक पर्याप्त पानी नल से पहुंचता तो उन्हें पढ़ाई के लिए और टाइम मिलता और वह ज्यादा अंक जा सकती। गांव में लोग बेटी देने से भी डरते है
गांव के राजूसिंह का कहना है मंत्री और उनकी विधानसभा के विधायक जोराराम कुमावत से लेकर हाल ही में आए शिक्षा मंत्री को भी ज्ञापन सौंप पेयजल समस्या से अवगत करवाया लेकिन हर बार की तरह आश्वासन ही मिला। स्थिति यह है कि महिलाओं को कुएं से पानी लाता देख यहां अपनी बेटी का रिश्ता करने आने वाले कई जने मन बदल देते है। कहते है कि हमारी बेटी कुओं से पानी नहीं ला सकती। सरपंच प्रतिनिधि बोले- डिमांड से आधा भी नहीं मिल रहा पानी
सोनाईमांझी गांव के सरपंच प्रतिनिधि रामसिंह कुम्पावत ने बताया कि जन जीवन मिशन के तहत गांव में नल कनेक्शन दिए गए है। लेकिन गांव में पानी की जितनी डिमांड है उससे आधा भी नहीं मिल रहा। समस्या यह भी है कि जल जीवन मिशन में पशुओं के लिए पानी का प्रावधान नहीं है। ऐसे में गांव में महीने में एक से तीन बार ही पानी की सप्लाई होती है। गांव में एकमात्र कुआं है जहां से गांव की महिलाएं पीने के लिए पानी लाती है। समस्या को लेकर कई बार जलदाय विभाग के अधिकारियों से लेकर जनप्रतिनिधियों से मिला लेकिन समाधान अभी तक नहीं हुआ। अधिकारी बोले- गांव में पानी की डिमांड ज्यादा होने से आ रही समस्या हरीराम चौधरी अधिशाषी अभियंता जन स्वास्थ्य अभि विभाग परि खंड द्वितीय पाली ने बताया कि सोनाई मांझी गांव में खौड पंपिंग स्टेशन से पानी की सप्लाई दी जा रही है। नियमानुसार 55 MCFT पानी दिया जा रहा है। लेकिन गांव की डिमांड ज्यादा है। ऐसे में उन्हें कुओं से पानी भरना पड़ता है।

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