लकवा, ब्रेन इंजरी ,सेरेब्रल पाल्सी, रीढ़ की हड्डी की चोट के कारण हाथ-पैरों के बेकार होने से लाचार जिंदगी जी रहे मरीजों के लिए आशा की किरण दिखी है। इनमें रिहैबिलिटेशन से मरीज काफी हद तक राहत पा सकता है। इसके लिए अब रोबोटिक फिजियोथैरेपी का चलन काफी तेजी से बढ़ा है। प्रभावित हिस्से की सटीक मूवमेंट और मरीज के हिसाब से डिजाइन किए गए एक्सरसाइज पैटर्न जैसी खूबियों के कारण रोबोटिक फिजियोथैरेपी के परिणाम पारंपरिक फिजियोथेरेपी से कहीं अधिक बेहतर है। ए क्यू फिजियो क्लिनिक एवं सीके बिरला हॉस्पिटल के सीनियर फिजियोथैरेपिस्ट डॉ. आशीष अग्रवाल ने इस नई तकनीक के बारे में एक वर्कशॉप में जानकारी दी।
डॉ. आशीष अग्रवाल ने बताया कि ब्रेन स्ट्रोक, ब्रेन इंजरी, मल्टीपल स्क्लेरोसिस, जीबीएस, पार्किंसंस, रीढ़ की हड्डी में चोट या अन्य न्यूरोमस्कुलर बीमारियों के कारण मरीज की शारीरिक गतिविधियां सीमित हो जाती हैं और वे सामान्य कार्यों के लिए भी दूसरों पर निर्भर हो जाते हैं। इसके रिहैबिलिटेशन के लिए फिजियोथैरेपी एक कारगर तरीका है। अब इसे रोबोटिक सपोर्ट भी मिल गया है जिससे इसके परिणाम जल्दी और कहीं अधिक बेहतर हो गए हैं।
डॉ. आशीष अग्रवाल ने बताया कि रोबोटिक फिजियोथैरेपी से मरीज को बहुत जल्दी सुरक्षित तरीके से चलने में सहायता मिलती है। रोबोट मरीज को सही तरीके से कदम रखने में भी मदद करता है। इससे मांसपेशियों को भी ताकत मिलती है और शरीर का बैलेंस बनाने में मदद मिलती है। लगातार ट्रेनिंग से मरीज के ब्रेन में फीडबैक जाता है और रिहैबिलिटेशन में सहायता होती है।
रोबोटिक फिजियोथेरेपी में मरीज की जरूरत के अनुसार थैरेपी को प्रोग्राम किया जाता है। यदि मरीज के दोनों पैर कार्य नहीं करते हैं तो उसकी अलग प्रोग्रामिंग होती है। यदि एक ही पैर या हिस्सा बेकार होता है तो उसकी अलग प्रोग्रामिंग की जाती है। हाथ के मूवमेंट के लिए, मल-मूत्र पर नियंत्रण विकसित करने, बोलने एवं निगलने जैसी समस्याओं के लिए अलग अलग मशीने होती है। ट्रेनिंग के दौरान मरीज की मांसपेशियों और शरीर में आने वाले बदलावों पर विशेष सॉफ्टवेयर नजर रखता है उससे संबंधित डाटा इकठ्ठा करता है। इससे मरीज के ट्रेनिंग पैटर्न में बदलाव कर उसे जल्दी ठीक किया जा सकता है। रोबोट की मदद से शिथिल पड़े अंग को चलाया जाता है। इससे लंबे समय से शिथिल पड़े अंग के चलने से बेहतर न्यूरोप्लासिटी विकसित होती है और ब्रेन मूवमेंट को याद करने लगता है और मांसपेशियों में अकड़न कम होने के साथ ही उस अंग की मांसपेशियों में ताकत आती है। इससे अंग धीरे-धीरे कार्य करने लगते हैं।
रोबोटिक उपकरण से थकान के बिना सटीक और ज़्यादा बार कसरत कर सकते हैं, जिससे रोगी की रिहैबिलिटेशन प्रक्रिया में नियामितता आती है। इस तकनीक से थैरेपी सेशन में लगने वाला समय बचता है और मरीज जल्दी अपने सामान्य जीवनचर्या में लौट सकता है। रोबोटिक उपकरणों में लगे सेंसर्स और डेटा एनालिसिस सॉफ्टवेयर चिकित्सकों को वास्तविक समय में रोगी की प्रगति को ट्रैक करने में मदद करते हैं।
जयपुरवासियों को मिली रोबोटिक फिजियोथैरेपी की जानकारी:डॉ. आशीष अग्रवाल बोले- न्यूरो मस्कुलर बीमारियों से निजात दिलाने में साबित हो रही कारगर
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