राजस्थान ललित कला अकादमी ने इस बार लुप्त होती कलाओं को मंच प्रदान करने के लिए अहम पहल की है। प्रदेश के तीन संभागों में कला प्रशिक्षण शिविर आयोजित कर युवा कलाकारों को कलाओं से जोड़ा है। अकादमी की ओर से प्रदेश में चार जगह ग्रीष्मकालीन
प्रशिक्षण शिविर लगाए गए थे। 15-15 दिवसीय शिविरों में भीलवाड़ा और अजमेर में लगे शिविरों का समापन हो चुका है। कोटा और बीकानेर में लगे शिविर 27 और 28 जून को पूरे होंगे।
अकादमी के सचिव डॉ. रजनीश हर्ष ने बताया कि अजमेर में राजस्थानी मांडण कला पर शिविर लगाया गया था, जो 25 जून को पूरा हुआ। वहीं भीलवाड़ा में फड़ शैली पर लगाए गया शिविर 21 जून को ही समाप्त हो चुका है। रहे कोटा-बूंदी चित्र शैली के प्रशिक्षण शिविर 27 को बीकानेर में मथेरण शैली का शिविर 28 को पूरा होगा।
मथेरन कला में बच्चों ने मथेरी कला में भगवान विष्णु के चौबीस अवतारों को अलग अलग तल पर चित्रित किया। पंद्रह दिवसीय शिविर में मथेरी कला के प्रशिक्षक मूलचंद महात्मा, समन्वयक मोना सरदार डूडी, संयोजक कमल जोशी और सह संयोजक सुनील दत्त रंगा ने बीकानेरी बादल के साथ भगवान विष्णु के 24 अवतारों को पेपर प्लेट, मिट्टी की हांडी और पंखियों पर अलग-अलग अंदाज से चित्रित किया।
डॉ. रजनीश हर्ष ने बताया कि इस प्रकार के प्रयोग से बीकानेर की इस लुप्त हो रही कला को एक नया आयाम मिलेगा। इससे हमारी संस्कृति और धरोहर से आने वाली पीढ़ी भी अवगत होगी। प्रशिक्षण कार्यक्रम राजस्थान के कई जिलों में भी चल रहे हैं। इसका उद्देश्य राजस्थान की पौराणिक और लुप्त हो रही कला और कलाकारों को बढ़ावा देना है, जिससे ये कलाएं पुनः अपना पौराणिक स्वरूप बरकरार रख सके। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान इस लुप्त कला को अलग अलग परिवेश में बनाकर एक नवजीवन दिया जाएगा। बाजार में इसको नए रूप में उतारा जाएगा। इससे आम आदमी का ध्यान इस ओर आकर्षित हो। साथ ही कला और कलाकारों को बढ़ावा मिल सके। जुलाई में बच्चों की बनाई कलाकृतियों की प्रदर्शनी जयपुर में लगेगी। राजस्थान ललित कला अकादमी में लगाई जाने वाली इस प्रदर्शनी में सभी प्रतिभागियों के चित्र प्रदर्शित किए जाएंगे।